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Monday, May 12, 2014

सिनेमा में मां...


जब संगीत के जादूगर ए आर रहमान को ऑस्कर के प्रतिष्ठित मंच पर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया,तो अभिवादन भाषण में रहमान ने उस क्षण की ख़ुशी बयां करते हुए कहा था,'हिन्‍दी फिल्मों का एक मशहूर डॉयलाग है-'मेरे पास मां है'।इस वक़्त मैं भी गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरे पास मां है। यह पुरस्कार उन्हीं का आशीर्वाद है।'इस अभिवादन भाषण में ए आर रहमान ने अनजाने में ही विश्व सिनेमा के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच पर हिंदी फिल्मों में मां के महत्त्व को प्रकाशित कर दिया। ..और साथ ही यह भी बता दिया कि हमारी फिल्मों की कहानियों में मां का चरित्र कितना महत्वपूर्ण है,तभी तो हिंदी फिल्मों के इतिहास का सर्वाधिक लोकप्रिय संवाद 'मेरे पास मां है' भी मां को समर्पित है।

दरअसल,भारतीय परिप्रेक्ष्य में मां के अस्तित्व के भावनात्मक पहलू को उभारने में हिंदी फिल्मों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। फिल्मों में मां की करुणामयी छवि को बेहद संजीदा अंदाज में प्रस्तुत किया जाता रहा है। कई  फिल्मों की कहानियां मां के चरित्र के इर्द-गिर्द बुनी गयी हैं,तो कई फिल्मों में नायक का उसकी मां से आत्मीय सम्बन्ध मुख्य कथानक रहा है। मां की करुणामयी छवि को चित्रित करने वाली अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और अनुभव से फिल्मों में मां के अस्तित्व को नए आयाम दिए हैं। इन अभिनेत्रियों में निरूपा रॉय उल्लेखनीय हैं। निरूपा रॉय ने सिल्वर स्क्रीन पर मां के इतने चरित्रों को जीवंत किया है कि उन्हें 'हिंदी फिल्मों की मां' की उपाधि दी जाती है। 'दीवार' से लेकर 'मर्द' तक और 'अमर अकबर एंथोनी' से लेकर ' लाल बादशाह' तक निरूपा रॉय ने दर्जनों फिल्मों में मां की भूमिका में अभिनय के रंग भरे हैं। निरूपा रॉय के बाद जिस अभिनेत्री को मां की भूमिका में दर्शकों का सर्वाधिक प्यार-दुलार मिला है..वह हैं राखी। राखी ने ' करण अर्जुन','राम-लखन','बाजीगर' और ' दिल का रिश्ता' जैसी कई फिल्मों मां की भूमिका को चित्रित किया। हालांकि, निरूपा रॉय और राखी ने कई फिल्मों में मां की भूमिकाएं निभाकर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय मां की उपाधि पायी,वहीं नर्गिस ने पहली बार ही 'मदर इण्डिया' में मां की भूमिका को इतने प्रभावी अंदाज में निभाया कि वह भूमिका हिंदी फिल्मों की  मां की सर्वाधिक सशक्त और प्रभावशाली भूमिका बन गयी। एक युवती की अस्मिता के लिए अपने प्रिय पुत्र को गोली मारने की हिम्मत रखने वाली मां के इस चरित्र में नर्गिस ने अपने अभिनय की ऐसी बानगी पेश की कि'मदर इंडिया' ऑस्कर पुरस्कार में नामांकित कर ली गयी। हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों को अपने अभिनय के रंग से रंगने वाली अभिनेत्रियों में दुर्गा खोटे,स्मिता जयकर, अचला सचदेव, रीमा लागू, ललिता पवार, अमीर बानो, फरीदा जलाल,लीला मिश्रा और कामिनी कौशल भी उल्लेखनीय हैं।

कुछ वर्ष पूर्व तक सिल्वर स्क्रीन की मां त्याग और करूणा की प्रतिमूर्ति थी। वह बिना उफ़ किये दूखों का पहाड़ उठा लेती थी। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जीवन भर त्याग करती रहती थी। तमाम तकलीफों और पति द्वारा ठुकराए जाने के बाद भी उसमें अपने बच्चों की खातिर जीने की हिम्मत थी।वह बेसहारा और लाचार थी,पर अपने बच्चों को संस्कारी बनाने का कोई मौका नहीं चूकती थी। अब सिल्वर स्क्रीन की मां का रूप बदल चुका है। बदलते वक़्त के साथ हिंदी फिल्मों की मां भी अब बिंदास और खुले विचारों वाली हो गयी है। वह बेबस और लाचार नहीं है। वह खुश और उत्साही है।  पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने दम पर वह बच्चों के भरण-पोषण की हिम्मत रखती है। अब वह अपने पुत्र-पुत्री से उनके गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड के विषय में बातें किया करती है। मर्यादा और परंपरा की चादर को उतारकर अब वह भी पार्टियो में झूमती है। अब उसके बाल सफ़ेद नहीं होते। अब वह किस्मत के भरोसे नहीं रहती,बल्कि किस्मत को बदलने की हिम्मत रखती है। 'जाने तू या जाने ना' की मां ऐसी ही थी। रत्ना शाह पाठक द्वारा निभायी गयी आधुनिक मां की इस लोकप्रिय भूमिका के इत्तर यदि मौजूदा दौर की बात करें,तो किरण खेर इस दौर की सर्वाधिक लोकप्रिय ऑन स्क्रीन मां हैं। किरण ने कई फिल्मों में आधुनिक मां की बिंदास छवि को बखूबी निभाया है। 'सिंह इज किंग','कभी अलविदा ना कहना','हम-तुम','वीर-जारा','दोस्ताना','मैं हूं ना' में किरण ने मां की रोचक भूमिकाओं को शिद्दत से निभाया और खुद को हिंदी फिल्मों में नयी पीढ़ी की लोकप्रिय मां के रूप में स्थापित किया। किरण के साथ ही फरीदा जलाल भी नयी पीढ़ी की दुलारी ऑन स्क्रीन मां हैं। अपनी मासूमियत और चुलबुले अंदाज से फरीदा जलाल मां की भूमिका को अलग रंग देती हैं। बीते दौर की मुख्य धारा की अभिनेत्रियां भी अपने अनुभव से मां की भूमिका को प्रभावी अंदाज में चित्रित करती रही हैं इनमें जया बच्चन और हेमा मालिनी उल्लेखनीय हैं। जया बच्चन ने 'फिजा','कल हो न हो' और 'कभी ख़ुशी कभी गम' में,तो हेमा मालिनी ने 'बागबां' में मां की भूमिका में अपने उम्दा अभिनय की छाप छोड़ी। जया और हेमा मालिनी की तरह कई और लोकप्रिय अभिनेत्रियां अपनी बढ़ती उम्र के मद्देनजर मां की भूमिका में रूचि दिखा रही हैं। इनमें रति अग्निहोत्री,पूनम ढिल्लन और पद्मिनी कोल्हापुरे काबिलेजिक्र हैं। ये तीन अभिनेत्रियां पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई फिल्मों में पहली बार मां की भूमिका निभाती हुई दिखीं,तो वहीँ पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'टू स्टेट्स' में अमृता सिंह और रेवती ने नए दौर में मां की भूमिका के महत्त्व को नए सिरे से परिभाषित किया।

हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों द्वारा बोले गए लोकप्रिय संवाद-
मेरे पास मां है (दीवार)
एक बार मुझे मां कहकर पुकारो बेटा (दीवार)
जुग-जुग जियो मेरे लाल (मदर इंडिया)
मेरे दूध का कर्ज चुकाने का वक़्त आ गया है (मदर इंडिया)
मेरे करण-अर्जुन आएंगे (करण अर्जुन)
मेरे लाल को यूं मत डांटिए (हम आपके हैं कौन)


मां ने दिखायी अभिनय की राह

मौजूदा दौर के कई अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए उनकी अभिनेत्री मां प्रेरणा रही हैं। मां से उन्हें अभिनय की विरासत मिली। मां की उपलब्धियों की बदौलत उन्हें हिंदी फिल्मों में शुरूआती पहचान मिली और सम्मान मिला। इन अभिनेता-अभिनेत्रियों में काजोल और सैफ अली खान उल्लेखनीय हैं। काजोल ने जहां मां तनुजा से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों में अभिनय के सफ़र की शुरुआत की,वहीं सैफ अली खान ने मां शर्मिला टैगोर के प्रोत्साहन से अभिनय जगत में प्रवेश किया। बड़े भाई की ही तरह सोहा अली खान ने भी हिंदी फिल्मों में अपनी पहचान बनायी। हेमा मालिनी ने ड्रीम गर्ल बनकर कई वर्षों तक हिंदी फ़िल्मी पटल पर अभिनय की बानगी पेश की,तो उनकी पुत्री एषा देओल ने भी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए फिल्मों की राह अपना ली। अभिनय की दुनिया में अभिषेक बच्चन के मनोबल को मां जया बच्चन ने बढ़ाया,तो मूनमून सेन ने रिया सेन और राइमा सेन के लिए फिल्मों की राह प्रशस्त की,वहीं डिम्पल कपाड़िया की दोनों बेटियों ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना ने हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमायी। करीना कपूर और करिश्मा कपूर के लिए उनकी मां बबीता प्रेरणा बनीं,तो लाजवाब अभिनेता के रूप में रणबीर कपूर की पहचान में मां नीतू कपूर का महत्वपूर्ण योगदान है।

मां की प्रेरणा से अभिनय की राहों पर जो चलें..


शोभना समर्थ- तनूजा और नूतन
तनुजा - काजोल
शर्मीला टैगोर - सैफ अली खान और सोहा अली खान
हेमा मालिनी- एषा देओल
मूनमून सेन - रिया सेन और राइमा सेन
बबीता-करीना कपूर और करिश्मा कपूर
नीतू कपूर-रणबीर कपूर
नर्गिस दत्त-संजय दत्त
स्मिता पाटिल-प्रतीक
डिम्पल कपाड़िया-ट्विंकल खन्ना
जया बच्चन-अभिषेक बच्चन
रति अग्निहोत्री-तनुज विरमानी
नूतन-मोहनीश बहल
किरण खेर-सिकंदर


  • -सौम्या अपराजिता